प्यारे लाल की फांसी के लिए सिर्फ सात दिन शेष थे। राष्ट्रपति जी ने दया याचिका खारिज कर दी थी। लेकिन दिल्ली में बैठे लोग इस फांसी के खिलाफ थे। उन लोगों ने प्यारे लाल के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार के लिए एक बार पुनः जनहित याचिका दायर कर दी थी।
प्यारे लाल को जेल के अंदर एकांत की कोठरी में भेज दिया गया था , उसे बता दिया गया था , कि तुम्हे अगले हफ्ते किसी भी दिन किसी भी समय जो निश्चित होगा फांसी दे दी जायेगी।
राष्ट्रपति की दया याचिका खारिज होते ही प्यारे लाल के आंसू थम ही नही नहीं रहे थे। दस साल से जेल में था। जेल में उसकी हैसियत एक जीनियस कैदी की हो गई थी। उसमें ऐसा बदलाव आया था , कि कैदी तो कैदी जेल प्रशासन तक उसके व्यक्तित्व का लोहा मानने लगे थे। पूरे दिन कैदियों के साथ मिलकर काम करना। हथकरघा में दरी , तौलिया , और सूती साड़ियां बनाने में महारत हासिल कर लिया था। नये कैदियों को वही प्रशिक्षण दिया करता। हथकरघा वर्कशाप का प्रभारी बना दिया गया था। उससे जो कमाई होती उससे कुछ रूपये काटकर शेष रूपये जेलर के हाथों सलमा बेगम उर्फ गुड्डी को भेज देता।
उसकी संगत में कई कैदी योग आसन करते। ध्यान लगाते। संगीत सभा होती। वह करीम की संगत में हारमोनियम बजाता। बहुत ही खूबसूरत राम का भजन गाता। योग और संगीत में मास्टर हो गया था। खास मौकों पर जेल के अंदर वही भजन सुनाता। उसके भजन जेल के अंदर गूंजते। सभी को आप कहता। सबकी आपबीती सुनता। लेकिन किसी को अपनी आपबीती कभी न सुनाता। किसी कैदी को कोई तकलीफ हो जाती तो सबसे पहले उसकी सेवा में वही हाजिर होता। सजायाफ्ता कैदी आजम , करीम , राजू और शमशेर उसके बहुत करीब थे। सभी आजीवन कारावास के कैदी थे। उसे और उसके सभी साथियों को पूरी उम्मीद थी , कि उसकी फांसी माफ हो जायेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यद्यपि पुनर्याचिका से जेल प्रशासन को पूरी उम्मीद थी। फिर भी उसे अब कोई दिलासा देने वाला नहीं था। जेल में दस साल के दौरान वह एक पल के लिए अपनी पुरानी जिंदगी नहीं भूल पाया था। इसलिए वह अपने आप को दिन रात काम में व्यस्त रखता। किसी-किसी रात तो वह सो नहीं पाता था। रात में ही उठकर वह दंड बैठक लगाता। जब शरीर पसीना-पसीना हो जाता तभी सो पाता।
आजम उसकी पीड़ा समझता और जानता। लेकिन वह मजबूर था। कभी-कभी वह शोभन सिपाही की लाई किताबें उठाकर शंकर जी के मंदिर के चबूतरे पर जाकर पूरी रात पढ़ता। आजम से शुरू में उसकी पक्की दुश्मनी थी। दोनों एक दूसरे से घृणा करते। दोनों के अंदर हिंदू और मुसलमान का कीड़ा कुलबुलाता रहता। धर्म के नाम पर दोनों बेहद कट्टर थे।
सैफुद्दीन बूढ़े हो चले थे। बीस साल से जेल में थे। जब जेेल में आये थे , तो जवान थे। काली मूंछें रखते। बाजू तो लोहे जैसे कड़े थे। एक घूसा दीवार में मार देते थे , तो उसका पलस्तर उखड़ जाता था। वही सैफुद्दीन देखते-देखते सिकुड़ गये थे। दो-दो सजाएं एक साथ भुगत रहे थे। उनकी चैड़ी छाती सिकुड़कर मुट्ठी भर हो गई थी। जेल के अंदर ही मरे और वहीं पर दफनायें भी गये। एक दिन सैफू शुक्रवार के दिन नमाज अदा करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे बने शिवमंदिर के चारो तरफ झाडू लगा रहे थे। प्यारे लाल की नजर अचानक उन पर पड़ी। उसके अंदर घृणा के भाव पैदा हो गये। उसने बिना कुछ समझे बोल दिया-
‘‘देखो , देखो , इस मुल्ले ने मेरे शिव के मंदिर को भ्रष्ट कर दिया। ’’जेल में आने के पहले सलमा के साथ कई बार मस्जिद की सीढ़ियां चढ़ चुका था। कई बार सलमा उसके साथ शिव और हनुमान जी के मंदिर जा चुकी थी। लेकिन जेल आते ही उसके अंदर मुसलमानों से घृणा हो गई थी। पीछे खड़ा आजम तपाक से बोल उठा था।
‘‘तेरा मंदिर अगर इतना ही पवित्र है तो जेल से उसे बाहर ले जा। ’’
बस इतनी सी बात पर दोनों में गुत्थम-गुत्था शुरू हो गई थी। बात खून खराबे तक पहुंच गई थी। दोनों ‘‘अंडर ट्रायल ’’ थे। सिपाहियों ने उन्हे पकड़ा और फिर पुराने कैदियों को सौंप दिया। पूरी रात दोनों को बांधकर पीटा गया। लात घूंसों से उनका स्वागत होता रहा। सैॅफू चाचा चाहते तो एक इशारे में सब रोक देते। लेकिन उन्होने उन्हे पिटते देखना ज्यादा जरूरी समझा। सुबह देानों को अपने सामने बुलाया और बोले।
‘‘स्वर्ग में हिन्दू और मुसलमान होते होंगे। यहां तो हम सभी कैदी हैं। मुजरिम हैं। कैदी की कोई जाति नहीं होती। वह सिर्फ कैदी होता है। जेल ही तो जीने का धर्म सिखाता है। यहां भी तुम लोग हिंन्दू और मुस्लिम बन गये।ग यहां तो इंसान बनने की कोशिश करो। ’’
सैफुद्दीन की इज्जत सभी करते थे। जेेल के अधिकारी भी उनका सम्मान करते। उन्हे दो अलग-अलग हत्याओं के आरोप में सजा हुई थी। लेकिन पहला अपराधी था जिसने इजलास के अंदर अपना अपराध कबूल किया था। उनके काका ने उनकी पूरी संपत्ति हड़प ली थी। सड़क पर आ गये थे। काका की हत्या की , फिर उस बिचैलिये की हत्या कर दी जिसने यह सब कराया था। जेल आने के पहले ही अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था। यह कहते हुए कि अब शायद ही मैं जेल से बाहर आऊं , इसलिए तुम आजाद हो। जो मेरा बचा है उसे लो और अपना जीवन पुनः शुरू करो। पत्नी को मुक्त कर दिया था। फिर पलटकर घर की ओर नहीं देखा था। दुनिया में खुदा ही उनका सब कुछ था। उसी के ध्यान में चैबीसों घंटे रहने लगे थे। कहते भी थे-उसकी बनायी दुनिया को मैं जिंदगी भर सेवा करता रहूंगा। एक इबादत मेरी यह भी रहेगी। जेल में अपने पास कुरान शरीफ , गीता , रामायण , बाइबिल , गुरूग्रंथ साहिब और ढेर सारी धार्मिक पुस्तकें रखते थे। उनके सिरहाने पर यह सारी पवित्र किताबे शोभायमान होती। जब फुर्सत होते तो बारी -बारी से उन्हे पढ़ते। आजम और प्यारे लाल को सामने बैठाकर बोले थे।
‘‘यह देख , ये सारी मजहबी किताबें हैं। मैंने इन किताबों में खुदा , राम , कृष्ण , और ईसा को ढूंढ़ा है। मुझे इनमें से कोई नहीं मिला। जेल के अंदर इन दरों दीवारों में ढूंढ़ा तो नहीं मिले। मिले कहां यह मैं तुम दोनों को बताता हूं। इन पेड़ पौधों में , हवा पानी और प्रकाश में। और कहां मिले , आओ तुम्हे दिखाता हूं। ’’
सैफुद्दीन ने उन्हे अपने साथ बैरक से निकालकर सीधे ‘‘हाथ करधा ’’ के बैरक में ले गये। जहां कई कैदी कपड़े बुन रहे थे। उन्होने कहा , इन्हे देखो। फिर उस बैरक में ले गये जहां लकड़ी की कुर्सियां और मेजें बनायी जा रही थी। कोई कुर्सी में तांत बुन रहा था तो कोई लकड़ी छील रहा था। कोई टूटे हत्थे लगा रहा था। सैफुद्दीन ने आगे कहा-तुम लोग इन्हे देखो। दूसरे बैरक में टकसाल का कारखाना था। जहां धातुओं की मूर्तियां गढ़ी जा रही थी। जमालुद्दीन चाचा ने हनुमान जी और दुर्गा माता की बहुत ही खूबसूरत मूर्तियां गढ़ी थी। उन्हे दिखाया। उसके बाद पत्थरों की कारीगरी दिखाने दूसरे बैरकों में ले गये। जहां रियाज खान और पत्तन धोबी ने कई मूर्तियों को शक्ल देने में लगे थे। बारी-बारी से प्यारे लाल और आजम ने हनुमान जी , शंकर जी , साई बाबा , गजानन महराज , काली मांर् , इंसा मसीह , दुर्गा मां और गायत्री माता की मूर्तियों को देखा। तभी सैफू ने कहा-
‘‘प्यारे आजम , जो खुदा और राम को गढ़ता है वह सबसे बड़ा खुदा होता है। देखो यह रियाज है। इस पर दो हिंदुओं के कत्ल का इलजाम है। इसे आजीवन कारावास मिला है। आज एक नई दुनिया के सृजन में लगा है। ’’
फिर सैफुद्दीन ने हंसते हुए कहा- ‘‘आजम प्यारे खुदा राम कोई अलग नहीं है। एक हैं। अपने अंदर देखो। तुम्हे ये सारे भगवान मिल जायेंगे। लेकिन यदि तुमने उन्हे अपने अंदर नहीं पहचाना तो इन्हे देखकर पहचान लो। ये ही भगवान है। सृष्टि को रचने वाला , पालन करने वाला और संहार करने वाला कोई और नहीं मनुष्य है। नर से पिशाच और नारायण दोनों बनते हैं। अब तय तुम्हे करना है कि तुम क्या बनना चाहते हो। ’’
दोनो चमत्कृत थे। देानों को विश्वास ही नहीं हो रहा था। जेल के अंदर भी इतना बड़ा संसार है , जहां भगवान गढ़े जाते हैं। सैफू चाचा ने आगे कहा- ‘‘सुनो , जेल सजा नहीं है। जेल तो आत्मचिंतन के लिए मनुष्य का पवित्र का घर है। मनुष्य को गढ़ने की टकसाल है। पापों को धोने का स्वर्ग है। ’’
उस दिन से आजम और प्यारे लाल के बीच कभी विवाद नहीं हुआ। दोनों परम मित्र बन गये थे। जिस दिन सैफुद्दीन चाचा का इंतकाल हुआ था , पूरा जेल रोया था। लेकिन उनके परिजन होने के बावजूद उनकी लाश लेने कोई नहीं आया थां। जेलर ने कई सूचनाएं भेजीं थीं तब भी कोई नहीं आया था। आखिर उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हे जेल परिसर में ही दफनाया गया था। सरकार ने उन्हे अच्छे आचरण की वजह से दो साल पहले छोडने का आदेश भी दिया था। लेकिन सैफू चाचा ने जेल से बाहर निकलने से मना कर दिया था। उन्हे आजादी नहीं चाहिए थी। जेल ही उनका परिवार था। उन्ही की मजार में प्यारे लाल सर पटक कर गिड़गिड़ा रहा था। ‘‘चाचा मैं जीना चाहता हूं। अपनी जिन्दगी को समाज सेवा के लिए अर्पित करना चाहता हूं। आप मेरे लिए अल्ला ताला से कुछ कीजिए। ’’
लेकिन फांसी की घोषणा होते ही प्यारे लाल को सबके बीच से हटाकर काल कोठरी में डाल दिया गया था। जेल के अंदर उसने पहली बार अकेलापन महसूस किया था। दस साल जेल में गुजारने के बाद भी कभी सलमा की याद नहीं आयी थी। महीने में वह दो तीन बार बैसाखी के सहारे चलकर उससे मिलने आती। लेकिन वह कभी न मिलता। मायूस होकर लौट जाती। आजम के समझाने के बावजूद न मिलता। बस यही कहता। उसे कह दो। मैं अतीत हूं। वह आगे बढ़ जाये। मेरा कोई ठिकाना नहीं है। मेरे लिए इंतजार न करे। मैं जिन्दगी भर अपने हिस्से की खुशी उसे देता रहूंगा। लेकिन उसे रह-रह कर सलमा याद आ रही थी। सलमा ने अपनी कोशिश को कभी बंद नहीं किया था। वह प्रधान मंत्री तक प्यारे लाल को बचाने के लिए मिल आयी थी। उसी के प्रयास से दिल्ली का सबसे बड़ा वकील पैरवी किया था। लेकिन एक पैसा नहीं लिया था। तब भी ………।
चिकान मोहल्ला मुसलमानों का मोहल्ला था। सत्तर प्रतिशत मुसलमान थे और तीस प्रतिशत हिन्दू थे। मुसलमानों का दबदबा होने के बावजूद आपस में भाईचारा था। सारे लोग आपस में मिलजुलकर रहते हैं। एक दूसरे के सुख दुख में खड़े होते। सलमा के पिता रहमान की साइकिल की दुकान थी और प्यारे लाल के पिता की परचून की दुकान थी। लेकिन दोनों परिवार पड़ोसी होने के साथ-साथ इस तरह रहते जैसे सगे भाई हों। सलमा अपने तीन भाई बहनों में मझली थी और प्यारे लाल अपने दोनों भाइयों के बीच बड़ा था। दोनों बचपन से दोस्त थे। साथ में स्कूल जाते और साथ में खेलते। सलमा की मां दौलत राम चिकवा की बेटी थी , जो रहमान से पे्रम विवाह कर ली थी। प्यारे लाल की रिश्ते में मौसी भी थी। लेकिन प्यारे को अपने बेटे से ज्यादा प्यार करती। सलमा और प्यारे के बीच अक्सर झगड़ा होता। लेकिन शाम होते- होते दोनों फिर एक हो जाते। कभी सलमा प्यारे को मनाने के लिए प्यारे के घर पर ही रूक जाती। बढ़ती उम्र के साथ दोनों के प्यार में गंभीरता आने लगी थी। लेकिन न तो सलमा के पिता रहमान को आपत्ति थी , और न ही प्यारे के पिता शौखी लाल को। दोनों जवानी की ओर बढ़ चले थे। दोनों का इश्क मुश्क घर से बाहर निकल कर सड़क पर चर्चा में आ गया था।
मोहल्ले में दोनों के प्यार पर बहसें शुरू हो गई थी। कहीं और कभी दोनों को एक साथ साइकिल पर सवार देखा जाता। दोनों पार्क में घंटो बतियाते। सलमा इतना अवश्य कहती- ‘‘प्यारे , हमारे चाचू रिझावन हम दोनों की शादी नहीं होने देंगे। कई बार अब्बू को धमकियां दे गये हैं। ’’
‘‘क्यों , तुम्हारी मां तो हिंहू हैं। हमारी बिरादरी की है। ’’
‘‘अम्मां बताती है। जब हमारे अम्मां का अब्बू से प्यार हुआ था और शादी की बात आई थी तो दोनों कौमों में झगड़ा हो गया था। वह तो मेरे नाना ने बात को आगे नहीं बढ़ने दिया। वर्ना छूरा चल जाता। ’’
‘‘तो हम लोग क्या करें ?’’
‘‘तुम्हारी बुआ कानपुर में रहती है। वहीं चलकर शादी कर लेते हैं। ’’
‘‘न सलमा , न। बुआ कभी शादी नहीं करने देगी। हमारे फूफा हम दोनों को काटकर कीमा बना देंगे। ’’ प्यारे ने सच उगल दिया था।
दोनो मायूस हो जाते। लेकिन तब तक दोनों एक दूसरे के काफी करीब आ गये थे। प्यारे को वह दृष्य याद आ गया था। जब दोनों नहानी में एक साथ आपस में लिपट कर नहा रहे थे। बाहर खड़ी अम्मां चिल्लाकर गाली दे रही थी। हरामियों बाहर निकल आओ। कोई देख लेगा तो …..। वह पूरी तरह उन प्यार के क्षणों केंा जी लेना चाहता था। आपस में किये वायदे को निभा लेना चाहते था। लेकिन सारी उम्मीदें खत्म हो गईं थीं। उसे सैफू चाचा की बात याद आ रही थी।
‘‘प्यारे जिन्दगी के जितने दिन मेरी मुट्ठी में हैं , मैं उन्हे पूरी तरह जी लेना चाहता हूं। यही आजादी है। यदि जवानी में जेेल से छूट गया होता , तो सिर्फ प्यार करता। ’’
प्यारे भी सिर्फ प्यार की बातें सोचना चाहता था। उस दिन घर पर वह अकेला था। सलमा अपना जूड़ा खोले प्यारे के लिए बकरे का गोश्त बनाकर लाई थी। सूना घर पाकर दोनों के अरमान के पंख उग आये थे। दोनों को जैसे इसी समय का इंतजार था। सलमा अपने आप प्यारे की बाहों में कैद हो गई थी। पर्दा गिरा था फिर उठ गया था। सलमा ने एक ही बात कही थी। ‘‘मेरे अब्बू की तरह वादा निभाना। ’’प्यारे ने उसके ठंडे होते होंठ में अपने होंठ रखते हुए सिर्फ इतना ही कहा था- ‘‘जान देकर भी अपना फर्ज निभाऊंगा। ’’ उसके बाद दोनों बिस्तर छोड़कर अलग हो गये थे।
प्यारे ने पिता की जगह दुकान संभाल ली थ्ीा। सलमा भी पढ़ाई छोड़कर मां के साथ बीड़ी बनाने में मदद करने लगी थी। लेकिन खाली वक्त प्यारे के साथ दुकान में भी बैठ आती। सिलसिला चल पड़ा था। बात काफी आगे बढ़ चुकी थी। दोनों तरफ चिंता की लहरें उभर आईं थी। रहमान ने शोैखीलाल से साफ कह दिया था। ‘‘यदि यहां दिक्कत है तो बाहर चलकर शादी करा देते हैं। मैं तो प्यार में कभी धर्म को आड़े नहीं आने देना चाहता। बड़े लोग तो वह सब करते हैं जो दूसरों को रोका करते हैं।
लेकिन ऊपर वाले को तो कुछ और ही मंजूर था। एक दिन रिझावन तलवार लेकर दुकान में ही आ गया था। और प्यारे को धमकाने लगा था। रहमान ने उसे डांट डपटकर भगाने की कोशिश की , किन्तु सलमा सामने आकर बोल उठी थी।
‘‘चाचू , यह हमारा निजी मामला है। क्यों नहीं रोकते अपने बेटे जावेद को। जो रोज राम तमेर की बिटिया को अपनी गाड़ी में बैठाये पूरा शहर घूमा करता है। ’’
रिझावन कहां शांत होकर लौट रहा था। उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया था। उसने बिना किसी लेट लतीफी के तलवार हवा में लहराया और सलमा के बाएं पैर में उतार दिया। सलमा का बायां पैर वहीं पर …….।प्यारे लाल उस दृष्य को बिल्कुल याद नही करना चाहता था। वह तो चांदनी रात में रानी तालाब में सलमा के साथ नाव में बैठा पायडल मार रहा था। वोंटिंग का शौक रहा हो या नहीं लेकिन सलमा ने वोटिंग के लिए कहा था। उसकी बीमार मां के पूरे बदन में तेल मालिश की थी। मां तो चाहती थी , कि सलमा बहू बन कर आ जाए । उसे कहां पता था कि प्रेम और धर्म परस्पर विरोधी है। पे्रम और जाति आपस में दुश्मन है। वह तो बीड़ी जब बनाती तो उसके साथ में जुबेदा चाची , अकरम बहू ,मीना चाची जरीना फातिमा दादी और सीता होती। देश दुनिया से बेखबर उन्हे अपनी -अपनी बीड़ी की संख्या पर जोर रहता। शाम को शेख जब लेने आता तो किसने बीड़ी ज्यादा बनाई है। उसी अनुपात में कमाई भी होती। सलमा के प्यार से सभी वाकिफ रहतीं।
फिर भी उसे सलमा को बचाने के लिए क्या-क्या करना पड़ा , सब याद आ गया था। सलमा के अब्बू ने उसी वक्त आटो बुलाकर सलमा को प्यारे लाल के साथ अस्पताल भागा था। लेकिन उन्हे क्या पता था , कि उनके पीछे क्या होने वाला है। सलमा की मां बिना देरी किये बकरा काटने वाला बका उठायी और आंचल में छिपाकर रिझवान के पास आई और क्रोध से बोली-
‘‘तेरी हिम्मत कैसी हुई मेंरे घर में दखल देने की। ’’
‘‘चली जा , वर्ना तेरा सर उतार दूंगा। रिझवान इतना ही बोल पाया था , कि सलमा की मां फिरोजा ने बका निकाला और रिझवान की गर्दन पार कर दी।
जिस समाज में धैर्य नहीं होता उसका यही हश्र होता है। वर्षो की आग कुछ पलों में परवान चढ़ती है और सब कुछ जलाकर भस्म कर देेती है। यही हुआ। शहर में आग हवा के साथ उड़़ी और घर-घर जाकर बताया , कि धर्म खतरे में है। अल्ला और भोले शंकर परेशानी में हैं। इसलिये धर्म को बचाना जरूरी होता है। क्योंकी धर्म दुधारू गाय होता है। क्या मौलवी क्या पंडित सभी ने अपने उपदेश और भाईचारा का जामा उतार कर खूंटी में टांग दिया था। और तलवार की मुठिया पकड़ ली थी। आग ऐसे बढ़ी जैसे हनुमान जी की पूंछ हो। कोई कोना नहीं छोड़ी। पूंछ ने एक बिभीषण का घर तो छोड़ भी दी थी।
देखते ही देखते माहौल पूरी तरह से दंगा में बदल गया था। आखिर जिस बात का डर था , वही हुआ था। हत्या सलमा के अब्बू और अम्मां की भी हुई थी। प्यारे लाल के पूरे परिवार को मार दिया गया था। सलमा के पिता को अस्पताल के बाहर ही मार दिया गया था। जिसका बदला प्यारे लाल ने उन्ही के हथियार से ले लिया था । प्यारे लाल वहीं पर गिरफ्तार हो गया था।
दस साल गुजारने के बाद भी प्यारे लाल कभी पुराने पन्नो को नहीं पलटा था। वह तो भूल ही गया था , कि उसके साथ कुछ हुआ था। पूरा शहर जानता था , कि उसने सलमा के पिता को बचाने के लिए हत्याएं किया था। लेकिन फांसी के बचे सात दिनों को पूरी तरह से जीना चाहता था। वह काम करते-करते फांसी के फंदे में चढ़ना चाहता था। काल कोठरी में एक पल नहीं गुजारना चाहता था। उसने फांसी को स्वीकार्य कर लिया था। उसने जेलर साहब से कहा भी था-ं
‘‘हुजूर , मै सात दिन को सात साल की तरह जीना चाहता हूं। पीछे वाले लैट्रिन टैंक को साफ करना चाहता हूं। उसकी बदबू से पूरी बैरक गंधाती हैं। आप नगर निगम से सिर्फ टैंकर मंगवा दीजिए। ’’
‘‘प्यारे ….तुम चिंता न करो। शायद सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका से तुम्हारी फांसी टल जाये। मैं टैंक साफ करा दूंगा। आज ही मेहतर आ रहे हैं। ’’जेलर का गला भर आया था।
‘‘हुजूर डर फांसी से नहीं लग रहा है। डर तो इस बात से लग रहा है , कि यदि यमपुरी में यमराज ने पूछ लिया , कि तुमने मनुष्य जाति के लिए क्या किया तो क्या जवाब दूंगा। सलमा बेगम को जी भरकर प्यार भी तो नहीं किया। ’’
‘‘नहीं प्यारे , तुमने तो सलमा को इतना प्यार दिया है , कि वह आज भी सिर्फ तुम्हारा ही रास्ता देख रही है। तुम्हारे लिए खाना लेकर आती है , और तुम नहीं खाते तो वह कैदियों के बीच बांटकर चली जाती है। तुमने अपने आचरण से ऊपर वाले को खुश कर लिया है। ईश्वर तुम्हारी फांसी …..। ’’
‘‘नहीं हुजूर , अब जीने की लालसा नहीं है। बस चिंता है तो सलमा की। उसे बुद्धि आ जाए और वह अपना घर बसा ले। मैं तो आदमी के रूप में भंगी बनना चाहता हूं। जिसका सिर्फ मकसद सफाई करना ही होता है। पूरी दुनिया की गंदगी साफ करना चाहता हूं। ताकि दुनिया रहने लायक हो सके। ’’
प्यारे लाल इतना बोलकर जेेलर के चरणों पर गिर गया था। लेकिन जेलर मजबूर था। अब प्यारे लाल को जेल से बाहर नहीं निकाल सकता था। सलमा रोेज मिलने आती। लेकिन जेल प्रशासन रोज उसे बैरंग लौटा देता। सख्त पहरा हो गया था। लेकिन प्यारे पूरे सात दिनों के लिए सलमा के नाम कर दिया था। जिस कोठरी में बंद था वह अपने नाखून से दीवार में सलमा का स्केच बनाता। पूरी दीवार में कई सलमा उतर गई थीं। चित्र में अपने नाखून के पोरों से बह रहे खून को उसके माथे में पिरो देता।
जो सिपाही उसे खाना खिलाता और संडास ले जाता , वह प्यारे से बहुत ही घृणा करता। क्योंकी उसी ने उसके एक रिश्तेदार गुड्डू का कत्ल किया था। दूसरा वाला उसी का दोस्त पप्पू था। वह कहता –
‘‘प्यारे लाल , तुझे तो फांसी से भी सख्त सजा मिलनी चाहिए। तूने अपने लोगों को मारा है। ’’
प्यारे हंस देता। फिर कहता – ‘‘जिन्हे उन लोागेां ने मारा था वह भी तो किसी के रिश्तेदार थे। लेकिन मुझे फांसी से डर नहीं लगता कालीचरण। फांसी तो हर एक के गले में लगी है। तुम नहीं देख पा रहे हो तो मैं क्या करूं। मैं तो इस फांसी से मुक्त होने जा रहा हूं। ’’ इतना बोलकर हंस देता।
‘‘प्यारे लाल , मैं तो तुझे फांसी नहीं देना चाहता। मैं तो चाहता हूं कि तू इसी तरह यहां घुट-घुट कर मरे ं। ’’
‘‘काली चरण , मेरी फांसी तो तय हो चुकी है। लेकिन किसी के सोचने से दुनिया बदल जाती तो क्या बुरा सोचा था सलमा से विवाह करने कां। लंेकिन वैेसा नहीं हुआ काली चरण। वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था। ’’
‘‘बड़ी-बड़ी बातें मत कर प्यारे। तू सैफुद्दीन नहीं बन सकता। ’’
‘‘वह तो फरिश्ता था कालीचरण। इस पापी का नाम उससे मत जोड़़। उसी ने मुझे जीना सिखाया है। लेकिन एक बात पूछू ?’’
‘‘पूछ……..। कालीचरण ने कहा।
‘‘मैं तो पापी हूं और तू पुण्यात्मा ठहरा। फिर पूरे दिन पापियों की तरह व्यवहार क्यों करता फिरता है। कहीं ऐसा तो नहीं , कि पूरे दिन पापियों के साथ रहते -रहते तू भी पापी तो नहीं बन गया। ’’ प्यारे लाल फिर हंस दिया था। फिर आगे बोला थां- ‘‘काली चरण , जेल एक चिंतन का स्थल हैं। यहां बुरे से बुरा व्यक्ति भी यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है , कि मैने क्या किया है। मुझे उनकी हत्या नहीं करनी चाहिए थी। लेकिन मैने किया। यदि यह उस वक्त सोच लेता तो शायद तस्वीर कुछ और होती। इसलिए कहता हूं कि तू भी गलत मत सोच। मैं जेल में मरूंगा और जेल के बाहर , बस अंतर इतना ही होगा। मृत्यु तो शाश्वत है। ’’
उस दिन से कालीचरण ने प्यारे लाल से दूरी बना ली थी। प्यारे लाल को पता था , कि वह उसके भोजन में थूक देता है। दाल में पेशाब भर कर लाता है। लेकिन वह तो हर जहर को अमृत की तरह पीता रहा है। उसे उससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं थी। लेकिन हंसते-हंसते कह भी दिया था- ‘‘काली चरण तेरे पेशाब में भी कितनी मिठास है रे। ’’ फिर अपनी मूंछों में अपना हाथ फंेरते हुए कहता-
‘‘हम सब तो एक ही ब्रह्म के अंश है कालीचरण। थूक और पेशाब तो उसी का हिस्सा है। ’’
फांसी के ठीक एक दिन पहले सलमा सुबह से ही जेल के अतिथि कक्ष में आकर बैठ गई थी। दूसरे दिन प्यारे लाल को फांसी होनी थी। उम्मीद थी , कि उसे रात में दूसरे जेल में शिफ्ट किया जायेगा। उसके जीवन का वह अंतिम दिन था। जेलर ने मिलने की इजाजत दे दी थी। आज वह अपने हाथों से प्यारे को खाना खिलाना चाहती थी। उसका प्रिय भोजन बिरयानी बनाकर लायी थी। उसे पता था , कि प्यारे बिरयानी को मना नहीं करेगा। फिर उसने भी आज मिलने की इच्छा जाहिर की है। सिर्फ सलमा से ही मिलना चाहता है। बार-बार आंखों में बह आते आसुओं को अपने दुपट्टे से उन्हे छिपा लेती। ठीक उसी तरह जब दोनों ने रानी तालाब के मंदिर में देवी मां के सामने अपने ंप्यार को स्वीकारते हुए प्यारे लाल ने उसके माथे में सिंदूर भरते हुए कहा था -सलमा इसे अभी छिपाकर रखना। आज से हम दोनों पति और पत्नी तो हो गये लेकिन कौओं की नजर से अपने सिंदूर को बचाना। सलमा ने कभी सिंदूर को सामने नहीं आने दिया।
उसे इंतजार था तो सिर्फ जेलर के आदेश का। मिलने का समय हो गया था। वह अपने आंसुओं को पोंछ ही रही थी ,तभी जेलर आया और बड़े गर्मजोशी से सलमा के सर पर हाथ धरते हुए कहा-
‘‘बेटी , तुम्हारे प्यार की जीत तो होनी ही थी। वह हो गई। प्यारे की फांसी टल गई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे टाल दिया। ’’
सलमा की खुशी का क्या कहना। वह उठी और जेलर के चरणों में जैसे ही झुकी जेलर ने उसे अपने सीने से लगा लिया। जेलर का भी गला भर आया था। प्यारे ने सबसे ज्यादा जेलर को ही तो प्रभावित किया था। उसने कहा था -जेलर साहब , आप कू्ररता छोड़िये। इसने आपको जेलर से कसाई बना दिया है। लोग आपसे डरते नहीं बल्कि घृणा करते हैं। और घृणा तो फांसी से भी ज्यादा कड़ी सजा है। उसने सलमा के सर पर फिर हाथ फेरा और उसे लेकर सीधे अंदर गया।
काल कोठरी का दरवाजा खुल गया था। वहां से प्यारे को फिर बैरक में लाना था। काल कोठरी के अंदर की दीवारों में रेखांकन देखकर जेलर और पूरी टीम हत्प्रभ थी। चारों तरफ एक विकलांग स्त्री का चित्र बना था। जिसके बाएं हाथ के नीचे बेैेसाखी थी। सभी ने पहचान लिया थी , कि यह सलमा है। प्यारे लाल के सामने रात में मिला भोजन उसी तरह रखा था। रोटियां एंेठ गई थी। चावल सूख गये थे। मग में पानी उसी तरह भरा रखा था। प्यारे सलमा की टूटी टांग के नीचे सर टिकाये बेैठा मुस्करा रहा था। जेलर ने उसे देखकर मुस्कराया। फिर बोला-
‘‘प्यारे , शायद तुम्हे पहले से ही पता था , कि फांसी टल जायेगी। चलो उठो और देखो तुम जिससे मिलना चाहते थे वह कितनी बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही है। ’’
प्यारे लाल नहीं उठा। सामने सलमा के चित्र को अपलक देख रहा था। जेलर साहब ने कई बार कहा लेकिन प्यारे लाल नहीं उठा। तभी कालीचरण आगे बढ़ा और प्यारे से बोला –
‘‘उठो प्यारे। देखो बाहर सलमा बी खड़ी तुम्हारा इंतजार कर रही है। ’’इतना बोलकर उसने प्यारे के हाथ को पकड़ने की कोशिश की , लेकिन उसके पकड़ते ही प्यारे लाल जमीन पर लुढ़क गया। उसने फांसी को धता बता दिया था। वह जेलर के आने के पहले ही एक लम्बी यात्रा में निकल गया था। पूरा जेल शोकमग्न हो गया था। यह सब अप्रत्याशित था। किसी को उम्मीद नहंी थी , कि ऐसा भी हो सकता है। पूरी डाक्टर्स टीम ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दिल की धड़कन बंद होने की रिपोर्ट दी थी। लेकिन सलमा ने सिर्फ एक ही बात कहा था-
‘‘वह तो सदा -सदा के लिए मेरे उदर में समा गया है। मेरा तो पूरा शरीर रोमांचित हो रहा है जेलर साहब। आप यकीन कीजिए। हम दोनों एक हो गये हैं। ’’सलमा इतना बोलकर पहले हंसी थी। फिर उसकी डकार फूट पड़ी थी। आंसू थे कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वह बार-बार कह रही थी -हां प्यारे ,हां। तुम रोओ नहीं। अब तो हम दोनों एक हो गये हैं। अब तो कोई मजहब हमें मिलने से नहीं रोक सकता।
सभी ने कहा सलमा पागल हो गई है। सलमा ने कहा -नहीं , पागल मैं नहीं। पागल तो वे लोग हो गये हैं , जो सलमा को समझ नहीं पा रहे हैं।
—समाप्त—