पुराणों से राजा बलि की कहानी बताई गई है, जो अत्यंत उदार थे। उनसे जो कुछ भी माँगा जाता, वह वे दे देते। देवता उन्हें पराजित नहीं कर सके, क्योंकि वे सभी को प्रसन्न करते थे। फिर विष्णु ने बौने वामन का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि माँगी। जब बलि मान गए, तब वामन विशाल बन गए और दो पगों में उन्होंने तीनों लोक पार कर लिये। फिर वामन ने पूछा, “आपने मुझे तीन पग भूमि देने का वचन दिया था। अब तीसरा पग कहाँ रखूँ?” महाराज बलि, जो वामन के इस बदलाव से अवाक् रह गए थे, ने अंत में वामन का तीसरा पग अपने सिर पर रख लिया—और इस तरह उन्हें पृथ्वी के नीचे ढकेल दिया गया।
इस कहानी के लोकप्रिय संस्करण में बलि को अभिमानी और विष्णु को अच्छा दिखाया गया है। इस प्रकार, यह कहानी छल-कपट के माध्यम से अच्छे द्वारा बुरे को परास्त करने की बात करती है। इसका एक मार्क्सवादी संस्करण भी है, जहाँ राजा बलि कट्टरपंथी समानता के विश्व के प्रतीक हैं और विष्णु दुष्ट ब्राह्मण हैं, जो इस ब्रह्मांड को हिला देते हैं।
लेकिन क्या इस कहानी का कोई गहरा अर्थ है? महाराज बलि के गुरु शुक्राचार्य से जुड़ा एक छोटा सा विवरण अकसर अनदेखा किया जाता है। उन्हें वामन पर शक हुआ और उन्होंने महाराज बलि को उन्हें तीन पग भूमि देने पर पुनर्विचार करने को कहा। किंतु राजा ने अपने गुरु की शंकाओं की उपेक्षा की। वामन को आश्वासन देने के लिए कि महाराज बलि उन्हें तीन पग भूमि देंगे, बलि को कमंडलु से धरती पर पानी डालना पड़ा। उसे रोकने के लिए शुक्राचार्य फूल में बदल गए और पानी को बहने से रोकने के लिए उन्होंने कमंडलु की टोंटी को बंद कर दिया। चतुर वामन ने पानी को फिर से बहाने के लिए घास के तिनके को टोंटी में डाला। यह करते ही शुक्राचार्य मानव बन गए और चिल्लाए, क्योंकि उनकी आँख में छेद हो गया था। उन्होंने अपनी एक आँख खो दी थी!
शुक्राचार्य को ‘भृगु’ के नाम से भी जाना जाता है, जो पृथ्वी के नीचे रहनेवाले असुरों से जुड़े हैं; वह जगह, जहाँ सारी संपत्ति, सारी लक्ष्मी स्थित है। इसलिए लक्ष्मी को ‘पाताल निवासिनी’ कहा जाता है। वे असुरों के राजा पुलोमन की बेटी ‘पौलोमी’ भी कहलाती हैं; और भार्गवी भी, जो भृगु की पुत्री हैं।
गौर करने पर हम समझ जाएँगे कि भूमिगत सभी धन—सोना, कोयला, लाजवर्द—का धरती से ऊपर खींचे जाने तक कोई मूल्य नहीं है। अब सोचिए कि यदि आप भूमि से मूल्य निकालते रहें तो क्या होगा? ठीक ऐसा ही असुर राजा बलि कर रहे थे। वे लोगों को उन्हें जो चाहे, जब चाहे, दे रहे थे। विष्णु इसी प्रवृत्ति को समाप्त करना चाहते थे; क्योंकि वे समझते थे कि इच्छाएँ अनंत हो सकती हैं, लेकिन संसाधन सीमित हैं। वामन अपने त्रिविक्रम रूप में यही संप्रेषित करने का प्रयास कर रहे थे कि मानव महत्त्वाकांक्षा कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं की जा सकती। कोई भी राजा अपनी प्रजा की जरूरतों को हमेशा के लिए पूरा नहीं कर सकता, क्योंकि जरूरत आसानी से लालच में बदल जाती है। जब तक कि उदारता को संतोष के साथ संतुलित नहीं किया जाता, उसका कोई लाभ नहीं होगा।
वामन के तीन कदम (धार्मिक कहानी)
देवदत्त पटनायक एक भारतीय लेखक, स्तंभकार, नेतृत्व सलाहकार, और पौराणिक कथाओं के व्याख्याकार हैं। वह धर्म, पुराण, मिथक, इतिहास और प्रबंधन जैसे विषयों पर लिखते हैं।
उनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियां:
उन्होंने 50 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें "मिथक: देवताओं की कहानियाँ", "जीवन: देवताओं का खेल", और "शक्ति: देवताओं का संघर्ष" शामिल हैं।
उनकी पुस्तकों का 20 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
उन्हें 2011 में "पद्मश्री" और 2022 में "पद्मभूषण" से सम्मानित किया गया था।
वह टाटा समूह, आईआईएम अहमदाबाद, और भारतीय सेना सहित कई संगठनों के लिए नेतृत्व सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।
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