इस निबंध में हम “बिहार में नारी के सशक्तिकरण” निबंध पर निम्नलिखित बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे जिससे हमारी समझ इतनी विकसित हो सके कि हम यह समझ पाने में सक्षम होंगे कि वास्तव में बिहार में नारी का सशक्तिकरण क्यों जरूरी है?
प्रस्तावना
• बिहार में नारी सशक्तिकरण का अर्थ
• बिहार में नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता
• बिहार में नारी सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ • बिहार में नारी सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
• संसद द्वारा नारी सशक्तिकरण और उनके संरक्षण के लिए पास किए कुछ अधिनियम
• नारी की बिहार निर्माण में भूमिका
• नारी सशक्तिकरण के लाभ
• उपसंहार
प्रस्तावना
बिहार में नारी सशक्तिकरण की जरूरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से ही बिहार में लैंगिक असमानता विद्यमान है। आज का बिहारी समाज भी पुरुषप्रधान समाज हैं जहाँ नारी की भावनाओं और उनके अधिकारों का कुटिलता पूर्वक हनन किया जा रहा है। इसका जीवंत उदाहरण हम सरपंच पति, मुखिया पति प्रमुख पति, विधायक पति जैसे उपहासिक चरित्रों में देख सकते हैं। नारी के लिये प्राचीन काल से ही बिहारी समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में ढ़ाल दिया गया है। बिहारी समाज में नारी को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रूप में नारी देवियो को पूजने की परंपरा है लेकिन इसका ये अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि केवल नारी को पूजने मात्र से बिहार के विकास की जरूरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि बिहार की आधी आबादी यानि नारी का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जिससे वे बिहार के विकास का आधार बनेंगी। आज के आधुनिक समय में बिहार में नारी सशक्तिकरण “खेत से लेकर विधान मंडल” तक एक विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। बिहार की नारी समुदाय के विषय में कहा जाता है कि –
करुणा की सागर दया की देवी है नारी,
ममता की सागर और क्षमा की मूरत है नारी ।
प्रकृति का रूप और सहनशीलता का स्वरूप है नारी,
जननी जन्मदात्री दुर्गा शक्ति स्वरूपा भगवती है नारी ।।
लेकिन विडम्बना तो देखिए इतनी गुणी नारी के लिए हमारे बिहार में अब जाकर सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। बिहार में नारियों को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जिनसे इसका क्षरण हो रहा है। जैसे- दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, यौन अपराध, असमानता, भ्रूण हत्या, नारियों के प्रति घरेलू हिंसा, वैश्यावृति, मानव तस्करी, शराब तस्करी, बाल विवाह और नारी अशिक्षा। अपने बिहार में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है। जहाँ नारी अपने परिवार के साथ ही बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। बिहार में शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, अनुसन्धानपरक कार्य आदि में नारी समुदाय की स्थिति सबसे खराब है।
बिहार में नारी सशक्तिकरण का अर्थ
नारी को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात नारी से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सुअवसर प्रदान करना ही बिहार में नारी सशक्तिकरण का अर्थ है।
बिहार में नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता
बिहार में नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण हैं। प्राचीन काल की अपेक्षा मध्य काल में बिहार के नारी सम्मान स्तर में काफी कमी आयी। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान घटने लगा। इसे और बेहतर तरीके से इस प्रकार समझ सकते हैं- –
- आधुनिक युग में बिहार की अनेकों नारी कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण नारी आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है ।
- शिक्षा के मामले में भी बिहार में नारी पुरुषों की काफी पीछे हैं। बिहार में पुरुषों की शिक्षा दर 70.32% प्रतिशत है, जबकि नारियोंकी शिक्षा दर मात्र 53.57% प्रतिशत ही है।
- बिहार के शहरी क्षेत्रों की नारी ग्रामीण क्षेत्रों की नारी की अपेक्षा अधिक रोजगारशील है। बिहार की लगभग 90% नारी मुख्यतः कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में दैनिक मजदूरी करती है।
- बिहार में नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता का एक और मुख्य कारण भुगतान में असमानता भी है।
- बिहार की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल नारी की है। मतलब पूरे बिहार के विकास के लिए इस आधी आबादी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किए हमारा बिहार विकसित हो पायेगा।
- पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार ( काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया।
- आधुनिक समाज नारी के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं सेवी समूह और एनजीओ आदि बिहार में नारी सशक्तिकरण दिशा में कार्य कर रहे है।
इसके अलावे भी बिहार की नारियों के साथ कई सारे अपराध जैसे लैंगिक, नस्लभेदी, नारी सूचक अपमानजनक – टिप्पणी, घरेलू हिंसा, अफिस, दफ्तर पर शोषण, यौन उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, हत्या, दहेज उत्पीड़न, प्रेम और शादी का झांसा देकर किया गया यौन शोषण, मनपसंद विवाह से रोकना, पुरुष की तुलना में कम वेतन मिलना, बाल विवाह, विधवा होने पर पुनः शादी करने से रोकना, जेल में नारी कैदियों का शोषण, यौन उत्पीड़न, बसों, ट्रेन, जैसे सार्वनाजिक स्थान पर नारियों से छेड़ छाड़, धर्म के नाम पर धर्मगुरु, बाबाओ द्वारा किया जाने वाला शारीरिक शोषण जैसी घटनाएं घटित होते हैं जिस कारण से उनका सशक्तिकरण किया जाना बहुत जरुरी है।
बिहार में नारी सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ
बिहारी समाज एक ऐसा समाज है, जिसमें कई तरह के रिवाज, मान्यताएँ और परम्पराएँ शामिल हैं। इनमें से कुछ पुरानी मान्यताएँ और परम्पराएँ ऐसी भी हैं जो बिहार में नारी सशक्तिकरण के लिए बाधा सिद्ध होती हैं। उन्हीं बाधाओं में से कुछ निम्नलिखित हैं-
(i) पुरानी और रूढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण बिहार के कई सारे क्षेत्रों में नारी के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में नारी को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है।
(ii) पुरानी और रूढ़ीवादी विचारधाराओं के वातावरण में रहने के कारण नारी खुद को पुरुषों से कम समझने लगती हैं और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती हैं।
(iii) कार्यक्षेत्र में होने वाला शारीरिक और मानसिक शोषण भी नारी सशक्तिकरण में एक बहुत बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
(iv) समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण नारी के लिए समस्याएँ उत्पन्न होती है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में नारी के साथ होने वाले उत्पीड़नों में 170 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
(v) बिहार में अभी भी घरों में उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैसले लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के सदैव ताने सुनने पड़ते है।
(vi) बिहार में नारी को अपने पुरुष समकक्षों की अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादा दयनीय है, विशेषतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है।
(vii) समान कार्य-समान वेतन का मुद्दा नारी और पुरुष के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है ।
(viii) नारी में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएँ भी नारी सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएँ है। बिहार में शहरी क्षेत्रों में लड़कियाँ शिक्षा के मामले में लड़कों के बराबर हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें काफी अंतर हैं।
(ix) बहुत सारी ग्रामीण लड़कियाँ जो स्कूल जाती और वह दसवीं कक्षा भी नहीं पास कर पाती हैं, किसी कारणवश उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है।
(x) कामकाजी नारी भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नहीं करती है। सही मायनों में नारी सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब नारी की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रूप से कहीं भी आ जा सकें।
(xi) कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात बिहार में नारी सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में नारी और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादा अंतर आ गया है।
बिहार में नारी सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
बिहार और भारत सरकार द्वारा बिहार में नारी सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इनमें से कई सारी योजनाएँ रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों से सम्बंधित होती हैं। इन योजनाओं का गठन बिहार की नारी की परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएँ मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना ( मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं।
नारी एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और बिहार सरकार द्वारा बिहार की नारी के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाएँ इस आशा के साथ चलाई जा रही है कि एक दिन बिहारी समाज में नारी को पुरुषों की ही तरह प्रत्येक अवसर का लाभ प्राप्त होगा-
(1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना
यह योजना कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिक्षा को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। इसके अंतर्गत लड़कियों के
बेहतरी के लिए योजना बनाकर और उन्हें आर्थिक सहायता देकर उनके परिवार में फैली भ्रांति लड़की एक बोझ है की सोच को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।
(2) नारी हेल्पलाइन योजना
इस योजना के अंतर्गत नारी को 24 घंटे इमरजेंसी सहायता सेवा प्रदान की जाती है, नारी अपने विरुद्ध होने वाली किसी तरह की भी हिंसा या अपराध की शिकायत इस योजना के तहत निर्धारित नंबर पर कर सकती है।
इस योजना के तहत बिहार समेत पूरे देश भर में 181 नंबर को डायल करके नारी अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं।
( 3 ) उज्जवल योजना
यह योजना नारी को तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए शुरू की गई है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत उनके पुनर्वास और कल्याण के लिए भी कार्य किया जाता है।
(4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लश्यमेंट प्रोग्राम फहर वूमेन (स्टेप)
स्टेप योजना के अंतर्गत नारी के कौशल को निखारने का कार्य किया जाता है ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके या फिर वह स्वयं का रोजगार शुरू कर सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत कई सारे क्षेत्रों के कार्य जैसे कि कृषि, बागवानी, हथकरघा, सिलाई और मछली पालन आदि के विषयों में नारियोंको शिक्षित किया जाता है।
(5) नारी शक्ति केंद्र
यह योजना समुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण नारियों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत छात्रों और पेशेवर व्यक्तियों जैसे सामुदायिक स्वयंसेवक ग्रामीण नारियोंको उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते है।
बिहार में नारी सशक्तिकरण हेतु राज्य सरकार के द्वारा किए जा रहे प्रयास-
(6) पंचायत, नगर निकायों में 50 फीसदी आरक्षण
2006 से पंचायती राज संस्थानों एवं 2007 से नगर निकाय के चुनाव में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी हैं। प्राथमिक शिक्षक नियोजन में भी 50 प्रतिशत स्थान नारी के लिए आरक्षित है जिससे वे सशक्त हो रहीं हैं।
(7) महिला बटालियन
बिहार में पहली बार महिला बटालियन का गठन किया गया हैं। सभी 40 पुलिस जिलों एवं 4 रेल पुलिस जिलों में एक एक महिला थाना की स्थापना एवं इसके लिए विभिन्न कोटि के 647 पदों का सृजन किया गया हैं। अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए स्वाभिमान बटालियन का गठन हुआ हैं। पुलिस बल में सिपाही से अवर निरीक्षक तक के पदों पर सीधी नियुक्ति में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
(8) कौशल विकास
सात निश्चय में शामिल कौशल विकास गतिविधियों से जीविका समूह की महिलाएं जुड़कर अपने को हुनरमंद बना रही हैं। जीविका के समूह सदस्यों के प्रयास का सबसे प्रभावी परिणाम है- बिहार में पूर्ण शराबबंदी । लोग, खुले में शौच से मुक्ति के लिए भी संकल्पित हो रहे हैं। जीविका कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक 88.16 लाख परिवारों को आच्छादित करते हुए महिलाओं के 8-15 लाख स्वयं सहायता समूहों का गठन किया जा चुका है। 50023 ग्राम संगठन एवं 820 क्लस्टर लेबल फेडरेशन कार्यरत हैं। अब तक 6.02 लाख स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से संबद्ध किया गया है। स्वयं सहायता समूहों की स्वयं की बचत राशि 739 करोड़ रुपए हैं।
( 9 ) बिहार राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (जीविका )
बिहार जीविका परियोजना आजीविका संबंधी गतिविधियों के लिए सहयोग प्रदान करके बिहार में गरीबी उन्मूलन हेतु राज्य सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है। जीविका परियोजना का उद्देश्य ग्रामीण समुदाय विशेषकर गरीब तबके के लोगों को उनके जीविकोपार्जन के लिए समुचित अवसर उपलब्ध कराना है। परियोजना का एक और उद्देश्य ग्रामीण नारी का सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह से सशक्तीकरण करना है। इसका लक्ष्य स्वयं सहायता समूहों द्वारा संस्थागत क्षमता विकसित करके ग्रामीण गरीबों की आमदनी बढ़ाना है।
( 10 ) मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना
बिहार में नारी के सर्वांगीण विकास और सशक्तीकरण हेतु बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना शुरू किया हैं। इस योजना के माध्यम से बिहार राज्य की नारी एवं किशोरियों का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सशक्तीकरण किया जा रहा है।
संसद द्वारा नारी सशक्तिकरण और उनके संरक्षण के लिए पास किए कुछ अधिनियम
भारत की संसद द्वारा अनेक कानून बनाए गए हैं जो नारियों को संरक्षण प्रदान करते हैं। यह कानून बिहार सरकार द्वारा भी नारी सशक्तिकरण और उनके संरक्षण के लिए राज्य में लागू है। नारियों के कुछ विशेष अधिकार एवं संरक्षण निम्नलिखित है-
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
हमारे देश में नारियों के कम होती संख्या को देखते हुए सन 1994 में लिंग प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया जिसके अनुसार जन्म से पूर्व अथवा मां के गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग ज्ञात करना अपराध है क्योंकि लिंग जांच का मुख्य उद्देश्य गर्भ में पल रही बालिका की हत्या करना होता है। यह कानून बिहार राज्य में भी लागू और प्रवर्तनीय हैं।
अवैध गर्भपात के खिलाफ अधिकार
इसके लिए भारत सरकार ने Medical Termination of Pregnancy Act 1971 पारित किया गया। इस कानून के अनुसार विशेष परिस्थितियों में ही पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भपात कराया जा सकता है ऐसी परिस्थितियां हैं – जिनमें शिशु या मां या दोनों की जान को खतरा है या शिशु विकलांग है। अवैध गर्भपात को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 312 से 318 में भी उपबंध किए गए हैं। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के तहत मां को भी स्वेच्छा से केवल 24 माह तक ही गर्भपात कराने की अनुमति प्राप्त है।
शिक्षा का अधिकार
संविधान के 86 वां संशोधन द्वारा एक नया अनुच्छेद 21क जोड़ा गया जो 6 से 14 वर्ष तक के सभी बालक और बालिकाओं को के लिए अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा का उपबंध करता है।
लैंगिक अन्याय के खिलाफ अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 अनेक आधारों पर समानता का वर्णन करता है जिसमें लिंग भी एक आधार है। यह अनुच्छेद नारियों को पुरुषों के समान ही अवसर की समानता के अधिकार की गारंटी देता है। बिहार में इस प्रकार की व्यवस्था से नारियां सशक्त हुई हैं।
समान वेतन का अधिकार
इसके लिए सन 1976 में समान परिश्रमिक अधिनियम पारित किया गया। अब नारियां भी पुरुषों के बराबर है और समान वेतन प्राप्त करने का अधिकार रखती हैं। उनके साथ किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता हैं।
कार्यस्थल पर शोषण के विरुद्ध अधिकार
सन 2013 में कार्यस्थल पर नारियों के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया है जिसमें नारियों के साथ उनके कार्य के स्थान पर होने वाले दुर्व्यवहार / यौन शोषण उत्पीड़न के रोकथाम के लिए पर्याप्त उपबंध किए गए हैं और अगर उनके साथ ऐसा कुछ होता है तो उसके लिए भी दिशा निर्देश दिए गए हैं। बिहार सरकार ने भी इस कानून को अपने राज्य के सीमा क्षेत्र के भीतर कड़ाई से लागू करने के लिए विशेष कानून बनाया है।
इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और 66ई में यह प्रावधान किया गया है की किसी नारी के निजी तस्वीरों को उसकी अनुमति के बिना प्रसारित या प्रचारित करना अपराध है। इस प्रावधान को लागू करने के लिए बिहार सरकार का आईटी विभाग सक्रिय रूप से अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रहा है।
मातृत्व अवकाश का अधिकार
इसके लिए सन 1961 में मेटरनिटी बेनिफिट एक्ट बनाया गया जिसे सन 2017 में संशोधित किया गया। इसके तहत किसी भी निजी या सरकारी संस्थान में कार्य करने वाली नारी को बच्चे के जन्म के लिए 26 हफ्ते तक का अवकाश मिलता है। अगर नारी ने शिशु को गोद लिया है और शिशु की उम्र 3 माह से कम है तो 12 हफ्ते का अवकाश मिलता है। सरोगेसी में भी अवकाश का प्रावधान है और प्रेग्नेंसी के आधार पर किसी नारी को उसकी नौकरी से निष्कासित नहीं किया जा सकता। बिहार सेवा संहिता के नियम 220 के अनुसार बिहार की नारियों को जो सरकारी सेवा में है को, 180 दिनों का अवकाश तथा 730 छुट्टियों का प्रावधान किया गया है और यह बिहार में लागू भी है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 क नारियों को उनके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा की जाने वाली क्रूरता के लिए चाहे वह (मानसिक हो या शारीरिक ) दंड का प्रावधान करता है। इसके अलावा घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 प्रत्येक नारी को संरक्षण प्रदान करता है चाहे वह नारी पत्नी, पुत्री माता या अन्य कोई हो। नारियों के प्रति उनके घर में होने वाले अपराधों से संरक्षण देने के लिए अनेक अधिनियम पारित हुआ जैसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, हिंदू विवाह अधिनियम । यह सभी अधिनियम प्रेत्येक रूप में एक नारी को अधिकार और संरक्षण प्रदान करते हैं।
संपत्ति में अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत पिता की पैतृक संपत्ति में पुत्री का भी अधिकार होता है एवं पति की अर्चित की संपत्ति में पत्नी का बराबर अधिकार होता है और यदि पत्नी तलाक ले रही है तो पति को मिली विरासत की संपत्ति में भी पत्नी का पति के बराबर अधिकार होता है और नारी अपनी संपत्ति को अपनी स्वेच्छा से अंतरण भी कर सकती है।
गिरफ्तारी से संबंधित अधिकार
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 46 (4) में किसी नारी की गिरफ्तारी के संबंध में उपबंध किए गए हैं जिसके अनुसार विशेष परिस्थिति के अलावा किसी नारी को सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और यदि ऐसा करना आवश्यक है तो इसके लिए नारी पुलिस अधिकारी द्वारा प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा लिखित अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा ।
निःशुल्क कानूनी सहायता
अगर किसी नारी को किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है और वह कानूनी सहायता की मांग करती है तो उसे निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी चाहे उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी ही क्यों ना हो। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 39क में एवं विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 12 बारे में भी प्रावधान किया गया है।
इसके अतिरिक्त बलात्कार की पीड़ित नारी को अपना नाम गोपनीय रखने का अधिकार है। बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों की रोकथाम के लिए स्पेशल पोक्सो अधिनियम बनाया गया है एवं नारियों को अधिकार है कि वे अपने साथ हुए अपराध की शिकायत किसी भी पुलिस थाने में कर सकती हैं। पुलिस अधिकारी उनसे यह नहीं कह सकते कि वह उनकी स्थानीय अधिकारिता में नहीं आती। नारियों को अपने साथ हुए अपराध की शिकायत को निर्धारित समय सीमा के बाद भी करने का अधिकार है। नारियों को सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। यह नारियों से जुड़े वह अधिकार है जिन का ज्ञान होना प्रत्येक बिहारी नारी के लिए आवश्यक है। जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति सजग रह सके।
नारी की बिहार निर्माण में भूमिका
बदलते समय के साथ आधुनिक बिहार की नारी पढ़-लिख कर स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेने में भी सक्षम हैं। अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर बिहार के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। बिहार में भी ऐसी नारी की कमी नहीं है, जिन्होंने समाज में बदलाव और नारी सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। ऐसी ही बिहार की एक कर्मठ महिला हैं अर्पिता साहा। बिहार के किशनगंज जिले की रहने वाली अर्पिता साहा पिछले 15 वर्षों से बिहार की महिलाओं, विशेषकर शोषित, पिछड़ी जाति तथा गरीब महिलाओं के सामाजिक तथा आर्थिक उत्थान के लिए काम कर रही है। पल्लवी सिन्हा व अमृता सिंह जिन्हें ‘पैड वूमेन ऑफ बिहार‘ के नाम से संबोधित किया जाता हैं ने, लड़कियों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल, समावेशी शिक्षा, लैंगिक समानता और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने पर रणनीतिक रूप से काम कर रही हैं। आज बिहार में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। आज बिहार की नारी जागरूक हो चुकी हैं। आज की नारी ने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार की ही जिम्मदारी को बेहतर निभा सकती है। आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर बड़े से बड़े कार्य क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। फिर चाहे काम मजदूरी का हो या बिहार के समग्र विकास का बिहार की नारी अपनी योग्यता नारी सशक्तिकरण के लाभ में साबित कर रही।
नारी सशक्तिकरण के लाभ
नारी सशक्तिकरण के बिना बिहार, देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। नारी सशक्तिकरण के बिना वह सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती । बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती। नारी सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर अधिकार पा सके।
नारी सशक्तिकरण के कारण नारियों की जिंदगी में बहुत से बदलाव हुए हैं-
(i) नारियों ने सभी कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है। (ii) नारियां अपनी जिंदगी से जुड़े छोटे दृबड़े फैसले खुद कर रही हैं।
(iii) नारियां अपने हक के लिए लड़ने लगी हैं और धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं।
(उदाहरण– सरगम महिला बैंड, दानापुर, पटना)
(iv) पुरुष भी अब नारियों को की क्षमता को समझने लगे हैं और उनके हक भी उन्हें दे रहें हैं।
(v) पुरुष अब नारियों के फैसलों की इज्जत करने लगे हैं। कहा भी जाता है कि दृ हक माँगने से नहीं मिलता छीनना पड़ता है और नारियों ने अपने हक अपनी काबिलियत से और एक जुट होकर मर्दों से हासिल कर लिए हैं। नारी अधिकारों और समानता का अवसर पाने में नारी सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है क्योंकि नारी सशक्तिकरण नारियों को सिर्फ गुजारे भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती, बल्कि उन्हें अपने अंदर नारी चेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का आदर्श माहौल भी तैयारी करती है।
उपसंहार
जिस तरह से बिहार वर्ष 2023 में भारत का तीसरा सबसे तेज आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाला राज्य है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में बिहार को नारी सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। बिहारी समाज में सच में नारी सशक्तिकरण लाने के लिए नारियों के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा। यह बहुत आवश्यक है कि हम नारियों के विरुद्ध अपनी पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाए।
भले ही आज के समाज में कई बिहारी नारियां मुख्यमंत्री, राज्यपाल, कुलपति, प्रशासनिक अधिकारी, डहक्टर, वकील, वैज्ञानिक आदि बन चुकी हो, लेकिन फिर भी बहुत सी नारियों को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्य और सामाजिक आजादी में अभी भी और सहयोग की आवश्यकता है। नारी सशक्तिकरण का यह कार्य काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार की सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक प्रगति नारियों के सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक प्रगति पर ही निर्भर करती है।
नारी सशक्तिकरण नारियों को वह मजबूती प्रदान करता है, जो उन्हें उनके हक के लिए लड़ने में मदद करता है। हम सभी को नारियों का सम्मान करना चाहिए, उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है। नारियां अब हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है। किसी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी, तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पाएगी”। वर्तमान में बिहार की नारी ने रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है। लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है।